प्रत्येक हिंदवासी है, आज बहुत दुःखी है बह रहे है, हर आँख से आज दरिया नीर प्रत्येक हिंदवासी है, आज बहुत दुःखी है बह रहे है, हर आँख से आज दरिया नीर
परमानंदको भाव, ध = धरापर बिखरती । नि = निरंतर जीभ तोरी, सा = साक्षातच सरस्वती परमानंदको भाव, ध = धरापर बिखरती । नि = निरंतर जीभ तोरी, सा = साक्षात...
कभी सहारा ले लेना, कभी किसी का सहारा, बन जाना तुम। कभी सहारा ले लेना, कभी किसी का सहारा, बन जाना तुम।
सहनशीलता धरती सी, विशालता अम्बर सी है ..... हां मैं नारी हूं। सहनशीलता धरती सी, विशालता अम्बर सी है ..... हां मैं नारी हूं।
बस नमक बनना चाहती हूं मैं नमक बना चाहती हूं मैं। बस नमक बनना चाहती हूं मैं नमक बना चाहती हूं मैं।
अनुपम सौंदर्य समेटे दृष्य, लोचन बसता, हृदय लुभाता। अनुपम सौंदर्य समेटे दृष्य, लोचन बसता, हृदय लुभाता।